मैं तो जीवन को जीने में विश्वाश करती हूँ न की काटने

 ऐसे परिवारों  की आर्थिक स्थिति भी ख़राब हो जाती है क्योंकि परेशानी की वजह से ना तो हमारा मन अच्छा होता है ना हीं दिमाग काम करता हैं 

हमे खुश कैसे रहना है और जीवन को काटने और जीने में क्या फर्क हैं |

जीवन को काटने और जीने में क्या फर्क हैं

आज हम बात करेंगे की हमे खुश कैसे रहना है और जीवन को काटने और जीने में क्या फर्क हैं | रोज़ एक जैसा रूटीन होने की वजह से हम बोर हो जाते हैं | हमे भी लाइफ में रिचार्ज की जरूरत होती हैं उसके लिए हमे अपने बजट के अनुसार घूमने जाना चाहिए | जब आप घूमने  जाते है तो आप अपने सारे दुःख ,प्रॉब्लम ,झगड़ा भूल जाते है। अपने परिवार को समझने लगते हैं  उनके और भी करीब जाते हैं | इसके साथ- साथ आप जो भी कार्य करते है आप उस कार्य को नई  सोच और पूरे  जोश के साथ शुरू करते हैं | इससे बहुत सारे फायदे होते हैं एक तो आप अपने  कार्य को 10 गुना एफर्ट के साथ करते है इससे आपके  काम में बरकत होती है | मेरे अनुसार इससे परिवार में खुशिया भी आती हैं | मैं  अपने परिवार मे ख़ुशी लाने  के लिए ऐसा करती हूँ | आप भी ज़रूर ऐसा करके देखे और आप मुझे कम्मेंट करके जरूर बताए |

जीवन को काटने के लिए मजबूर हो जाते हैं  

आज भी मैंने देखा है की कुछ लोग घूमने जाने को व्यर्थ समझते हैं | वे सिर्फ पैसा  बचत करने में ज़्यादा  ज़ोर डालते हैं ऐसे में परिवार में सिर्फ झगड़ा ,उलझन परेशानी बड़ जाती हैं | ऐसे परिवारों  की आर्थिक स्थिति भी ख़राब हो जाती है क्योंकि परेशानी की वजह से ना तो हमारा मन अच्छा होता है ना हीं दिमाग काम करता हैं जिसकी वजह से हम, काम भी अच्छे  से नहीं कर पाते और जीवन को काटने के लिए मजबूर हो जाते हैं  |

मैं  तो जीवन को जीने में विश्वाश करती हूँ की काटने में आप मुझे जरूर बताएं आप को क्या पसंद हैं जीना या काटना |

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